Author name: Neev Gwalior

“खोज की खुशी: जब बच्चों ने मिलकर ढूंढा खजाना!”

बचपन का सबसे खूबसूरत हिस्सा होता है—खेलना, हँसना और सीखना। हाल ही में जब हम अपने लर्निंग सेंटर के बच्चों को “ट्रेज़र हंट” गेम में शामिल कराने ले गए, तो यह एक अनुभव बन गया—जो सिर्फ खेल नहीं था, बल्कि एक यादगार सीख बनकर उभरा। हमने बच्चों को दो टीमों में बाँटा। दोनों टीमों को एक-एक नक्शा सौंपा गया—जिसमें छुपे हुए खज़ाने तक पहुँचने के लिए कई रहस्यमयी “क्लूज़” और “पहेलियाँ” छिपी थीं। नक्शे में चिन्हित स्थानों पर ‘X’ का निशान बना था, जहाँ हर सुराग बच्चों को खजाने की ओर ले जाता था। खोज की शुरुआत: जैसे ही खेल शुरू हुआ, बच्चों की आँखों में उत्साह और जिज्ञासा झलकने लगी। वे पूरी लगन और समझदारी से नक्शे को पढ़ते हुए इधर-उधर दौड़ने लगे। किसी को पेड़ के नीचे कुछ संदिग्ध दिखा, तो कोई झूले के पास पहेली सुलझाने में मग्न था। हर क्लू उन्हें अगली मंज़िल तक ले जाता, और हर हल हुई पहेली उन्हें और अधिक आत्मविश्वास देती। बच्चे पूरी तरह टीमवर्क के साथ काम कर रहे थे—कोई सोच रहा था, कोई खोज रहा था, और कोई अपने साथियों का हौसला बढ़ा रहा था। “बचपन की सबसे बड़ी खोज होती है—सीखना खेल-खेल में!” इस खेल के माध्यम से बच्चों ने सिर्फ एक ट्रेज़र नहीं ढूंढा, उन्होंने कई जीवन-मूल्य भी सीखे: वो पल जब मिला खज़ाना… जब आखिरकार एक टीम ने खज़ाना ढूंढ लिया, तो दूसरी टीम के चेहरे पर भी खुशी थी—क्योंकि उन्होंने इस यात्रा को साथ जिया था। उस छोटे से खज़ाने के डब्बे में भले ही कुछ चॉकलेट्स और इनाम थे, पर असली खज़ाना था वो मुस्कानें, वो भागीदारी, और वो सीख जो हर बच्चे के दिल में बस गई। इस तरह का खेल केवल मनोरंजन नहीं होता, यह बच्चों की सोच, समझ और सामाजिक विकास की दिशा में एक मजबूत क़दम होता है। हम आने वाले दिनों में और भी ऐसे खेलों और गतिविधियों के माध्यम से बच्चों की दुनिया को और समृद्ध करने की कोशिश करेंगे।

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नींव की कहानियाँ – बदलाव की वो सच्ची परछाइयाँ

जब उम्मीद ने दरवाज़ा खटखटाया ग्वालियर की तंग गलियों में, जहाँ ज़िन्दगी अक्सर चुप्पियों में लिपटी रहती है, वहीं कुछ मासूम आवाज़ें धीरे-धीरे उभरने लगी हैं। ये आवाज़ें हैं उन बच्चों और किशोरियों की, जिन्होंने न सिर्फ़ अपने भीतर के डर को हराया, बल्कि अपने समाज के लिए उम्मीद की मशाल भी थामी। नींव शिक्षा जनकल्याण समिति की कोशिशें सिर्फ शिक्षा तक सीमित नहीं हैं—यह बदलाव की वो पहली सीढ़ी है, जहाँ से सपनों की असली उड़ान शुरू होती है। एक चुप्पी जो बोल पड़ी – ‘निकिता’ की कहानी एक समय था जब निकिता को माहवारी पर बात करना शर्मिंदगी का कारण लगता था। लेकिन नींव की “जागोरी किशोरी समूह” से जुड़ने के बाद उसने न सिर्फ बोलना सीखा, बल्कि दूसरों को भी जागरूक करना शुरू कर दिया। आज निकिता गांव की किशोरियों से लेकर महिलाओं तक के लिए साहस का प्रतीक बन चुकी है। मासिक बैठकों से लेकर प्रशिक्षण सत्रों तक, वह अब एक लीडर है – अपने गाँव की और अपने मन की भी। शिरी – जो अब खुद की आवाज़ बन गई शिरी तोमर कभी इतनी संकोची थी कि अपना नाम भी डर-डर के बताती थी। लेकिन नींव की सावित्रीबाई फुले पाठशाला ने उसे वो मंच दिया जहाँ उसे खुद को समझने का मौका मिला।“जागरिक कार्यक्रम” में भाग लेने के बाद, संवैधानिक मूल्य, लैंगिक समानता और आत्मसम्मान जैसे शब्द उसके जीवन का हिस्सा बन गए।आज शिरी सवाल करती है, समझाती है और समाज को जागरूक करने का सपना देखती है। 🎭 नाटक से उठी आवाज़ – भ्रूण हत्या और लिंग भेद जैसे मुद्दों पर ग्वालियर की बस्तियों में जब बच्चों ने नाटक किया, तो सिर्फ मंच नहीं बदला, दिल भी बदले।हर संवाद, हर अभिनय लोगों की आंखों को नम कर गया। नींव के इन बच्चों ने साबित किया कि बदलाव के लिए उम्र नहीं, सिर्फ जज़्बा चाहिए। सोनिया – दस्तावेज़ नहीं थे, पर हक था 12 वर्षीय सोनिया वर्मा स्कूल नहीं जाती थी क्योंकि उसके पास कोई सरकारी कागज़ नहीं था। माँ-बाप मजबूर थे, और अफसर सुनने को तैयार नहीं।तभी नींव की टीम ने शिक्षा का अधिकार कानून का सहारा लिया और सोनिया को स्कूल तक पहुँचाया – और साथ में तीन और बच्चों को भी।आज सोनिया स्कूल जाती है, किताबें खोलती है, सपने भी। एकता की गूंज – ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ 26 जनवरी पर निकली यात्रा सिर्फ कदमों की हलचल नहीं थी, वह सोच की एक क्रांति थी।500 से ज़्यादा युवाओं ने संविधान की मूल भावनाओं को गीतों, संवादों और स्नेह से जीवंत कर दिया।यह आंदोलन उन किशोरों का था जो मानते हैं – बदलाव आज से ही शुरू होता है। हर बदलाव की एक नींव होती है नींव की कहानियाँ हमें बताती हैं कि बदलाव दूर नहीं, वो हमारे आस-पास ही है—बस उसे पहचानने की ज़रूरत है।निकिता, शिरी, सोनिया और न जाने कितने बच्चे… आज अपनी आवाज़ बन चुके हैं। और यह आवाज़ें नींव की देन हैं – एक सोच, एक साज़िश बदलाव की। क्या आप भी एक नींव बन सकते हैं? क्या आपके पास भी ऐसी कोई कहानी है? या आप भी किसी की कहानी बदलना चाहते हैं?👉 हमसे जुड़िए, हमें लिखिए, और चलिए साथ मिलकर कोई अगली ‘नींव की कहानी’ रचते हैं।

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उसके माथे में सिंदूर था… लेकिन आँखों में सपने नहीं थे

हम एक बस्ती गए थे — मकसद था वहां के लोगों से मिलना, उनकी ज़िंदगियों को समझना और जरूरतमंदों के लिए कुछ करना। लेकिन उस दिन जो देखा…वो सिर्फ एक घटना नहीं थी,वो एक झटका था — सिस्टम को, समाज को, और हमें भी। बस्ती के एक कोने में एक सजा-संवरा घर ।पास खड़ी एक महिला ने बताया — “आज विदाई है…” थोड़ा नज़दीक गए तो देखा —एक बच्ची, मुश्किल से 15 साल की,मांग में सिंदूर, गले में मंगलसूत्र, हाथों में चूड़ियाँ…और आंखों में — बहते आंसू। उसे सजाया गया था, लेकिन खुशी से नहीं — मजबूरी से।उसकी शादी हो रही थी,लेकिन उसकी मर्जी से नही।किसी ने नहीं पूछा — उसके सपने क्या हैं?किसी ने नहीं सोचा — क्या वो इसके लिए तैयार है? वो कुछ नहीं बोली, लेकिन उसकी चुप्पी चीख रही थी — हम वहीं खड़े रह गए —दिल भारी, आंखें नम।एक और मासूम ज़िंदगी,समाज के ठेकेदारों की सोच के नीचे दबा दी गई। आज भी वो चेहरा हमारे ज़ेहन में है।हर बार याद आता है, तो एक सवाल उठता है —क्या हमने कुछ किया? क्या अब भी देर नहीं हुई? “एक लड़की की शादी से पहले उसकी किताबें पूरी होनी चाहिए, न कि उसकी गृहस्थी।” “बचपन सहेजिए, क्योंकि यही असली भविष्य है।” हम सिर्फ एक सामाजिक संगठन नहीं हैं।हम उन बच्चों की आवाज़ हैं —जिन्हें बोलने का हक़ कभी मिला ही नहीं। हम तब तक नहीं रुकेंगे,जब तक हर लड़की को उसका बचपन,उसकी शिक्षा,और उसका “ना” कहने का हक़ वापस न मिल जाए। आप भी साथ आइए।बचपन को बचाइए।शादी नहीं, शिक्षा दीजिए।

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