नींव की कहानियाँ – बदलाव की वो सच्ची परछाइयाँ

जब उम्मीद ने दरवाज़ा खटखटाया ग्वालियर की तंग गलियों में, जहाँ ज़िन्दगी अक्सर चुप्पियों में लिपटी रहती है, वहीं कुछ मासूम आवाज़ें धीरे-धीरे उभरने लगी हैं। ये आवाज़ें हैं उन बच्चों और किशोरियों की, जिन्होंने न सिर्फ़ अपने भीतर के डर को हराया, बल्कि अपने समाज के लिए उम्मीद की मशाल भी थामी। नींव शिक्षा जनकल्याण समिति की कोशिशें सिर्फ शिक्षा तक सीमित नहीं हैं—यह बदलाव की वो पहली सीढ़ी है, जहाँ से सपनों की असली उड़ान शुरू होती है।

“हर बच्चे की मुस्कान के पीछे एक प्रेरणादायक कहानी होती है।”

एक चुप्पी जो बोल पड़ी – ‘निकिता’ की कहानी एक समय था जब निकिता को माहवारी पर बात करना शर्मिंदगी का कारण लगता था। लेकिन नींव की “जागोरी किशोरी समूह” से जुड़ने के बाद उसने न सिर्फ बोलना सीखा, बल्कि दूसरों को भी जागरूक करना शुरू कर दिया।

आज निकिता गांव की किशोरियों से लेकर महिलाओं तक के लिए साहस का प्रतीक बन चुकी है। मासिक बैठकों से लेकर प्रशिक्षण सत्रों तक, वह अब एक लीडर है – अपने गाँव की और अपने मन की भी।

शिरी – जो अब खुद की आवाज़ बन गई शिरी तोमर कभी इतनी संकोची थी कि अपना नाम भी डर-डर के बताती थी। लेकिन नींव की सावित्रीबाई फुले पाठशाला ने उसे वो मंच दिया जहाँ उसे खुद को समझने का मौका मिला।
“जागरिक कार्यक्रम” में भाग लेने के बाद, संवैधानिक मूल्य, लैंगिक समानता और आत्मसम्मान जैसे शब्द उसके जीवन का हिस्सा बन गए।
आज शिरी सवाल करती है, समझाती है और समाज को जागरूक करने का सपना देखती है।

🎭 नाटक से उठी आवाज़ – भ्रूण हत्या और लिंग भेद जैसे मुद्दों पर ग्वालियर की बस्तियों में जब बच्चों ने नाटक किया, तो सिर्फ मंच नहीं बदला, दिल भी बदले।
हर संवाद, हर अभिनय लोगों की आंखों को नम कर गया। नींव के इन बच्चों ने साबित किया कि बदलाव के लिए उम्र नहीं, सिर्फ जज़्बा चाहिए।

सोनिया – दस्तावेज़ नहीं थे, पर हक था 12 वर्षीय सोनिया वर्मा स्कूल नहीं जाती थी क्योंकि उसके पास कोई सरकारी कागज़ नहीं था। माँ-बाप मजबूर थे, और अफसर सुनने को तैयार नहीं।
तभी नींव की टीम ने शिक्षा का अधिकार कानून का सहारा लिया और सोनिया को स्कूल तक पहुँचाया – और साथ में तीन और बच्चों को भी।
आज सोनिया स्कूल जाती है, किताबें खोलती है, सपने भी।

एकता की गूंज – ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ 26 जनवरी पर निकली यात्रा सिर्फ कदमों की हलचल नहीं थी, वह सोच की एक क्रांति थी।
500 से ज़्यादा युवाओं ने संविधान की मूल भावनाओं को गीतों, संवादों और स्नेह से जीवंत कर दिया।
यह आंदोलन उन किशोरों का था जो मानते हैं – बदलाव आज से ही शुरू होता है।

हर बदलाव की एक नींव होती है नींव की कहानियाँ हमें बताती हैं कि बदलाव दूर नहीं, वो हमारे आस-पास ही है—बस उसे पहचानने की ज़रूरत है।
निकिता, शिरी, सोनिया और न जाने कितने बच्चे… आज अपनी आवाज़ बन चुके हैं। और यह आवाज़ें नींव की देन हैं – एक सोच, एक साज़िश बदलाव की।

क्या आप भी एक नींव बन सकते हैं? क्या आपके पास भी ऐसी कोई कहानी है? या आप भी किसी की कहानी बदलना चाहते हैं?
👉 हमसे जुड़िए, हमें लिखिए, और चलिए साथ मिलकर कोई अगली ‘नींव की कहानी’ रचते हैं।

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